रुद्राभिषेक एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जो भगवान शिव की कृपा पाने का एक सरल तरीका है। इसमें जल, दूध, दही, और शहद का प्रयोग किया जाता है, जो भक्ति का प्रतीक है, और जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य पाने में मदद करता है। क्या आप जानते हैं कि किस सामग्री से क्या लाभ मिलता है? जानें इस अनुष्ठान की विधि और इसके फायदों के बारे में, और कैसे आप अपने जीवन में अच्छे परिवर्तन ला सकते हैं। शिव की कृपा से अपने जीवन को बेहतर बनाएं!
भगवान शंकर की पूजा करने के लिए सर्वप्रथम व्यक्ति को प्रातः काल उठ करके स्नान ध्यान करने के उपरांत मंदिर में जाना चाहिए और उसके बाद पूजन की सारी सामग्री लेकर के तैयारी करनी चाहिए फिर किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर ब्राह्मण का पूजन करना चाहिए और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि आप हमारी पूजा करें फिर जब सारी तैयारी हो जाए तो जो व्यक्ति पूजा करवा रहा है वह पूर्व या फिर उत्तर दिशा की ओर मुंह करके भगवान शंकर की पूजा आराधना आरंभ करें जब पूजा करें तो उसमें कोई विघ्न बाधा ना आए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए और किसी भी प्रकार प्रकार का वहां पर शोर ना हो इसके लिए भी उचित व्यवस्था करनी जरूरी है क्योंकि जब हम पूजा में मंत्रों में ध्यान लगाते हैं तब अगर शोर हो जाए तो हमारा सारा ध्यान भटक जाता है और हृदय से ध्यान नहीं लग पाता है क्योंकि भगवान की पूजा में हमेशा याद रखें आप कहीं पर भी हो कहीं भी कर रहे हो वहां पर हृदय से ध्यान होना अति आवश्यक है अगर हृदय से ध्यान नहीं होता है तो भगवान उसे पूजा को स्वीकार नहीं करते इसलिए इसका ध्यान रखना अति आवश्यक है
तो सर्वप्रथम आपने क्या करना है ध्यान से पढ़िए
अगर आप पत्नी के साथ बैठते हैं तो अपनी पत्नी को शंकर जी की पूजा में दक्षिण (दाहिने) भाग में बिठाकर भी अथवा तेल का दीपक जलाएं फिर
भगवान शंकर का ध्यान करें
ध्यान के बाद पुष्प अर्पण करें और फिर तीन बार आचमन करें आचमन करने के बाद बाएं हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका में तीन कुशओं की पवित्री धारण करें और जल को अभिमंत्रित करें
फिर उसे जल को यजमान के ऊपर और पूजन सामग्री के ऊपर छिड़क दें
उसके बाद पीली सरसों लेकर के दिशाओं का बंधन करें
फिर आसान पूजन
घंटा पूजन
शंखपूजन
धूप पात्र पूजन
भस्म धारण
रुद्राक्ष धारण
शिखा बंधन
प्राणायाम
दीपक पूजन
ब्राह्मण पूजन
और उसके बाद यजमान तिलक जो ब्राह्मण के द्वारा होता है उसके बाद हाथ जोड़कर के भगवान शंकर तथा उनके सभी गणो का ध्यान भगवान के पूरे परिवार का ध्यान करते हुए स्वस्ति मंत्र या स्वस्तिवाचन बोलना चाहिए और उसमें गौरी गणेश अंबिका शंकर भगवान ईस्ट कुल देवता ग्राम देवता वास्तु पुरुष क्षेत्र के देवता तीर्थ देवता सभी का ध्यान करना चाहिए और जब यह स्वस्ति वाचन हो जाए तो हाथ में दूर्वा रखकर साथ में अक्षत रखकर भगवान गणेश जी का ध्यान करना चाहिए और जब यह सब पूरा हो जाए तो
उसके बाद
संकल्प करना चाहिए
विष्णवे विष्णवे विष्णवे प्रकार से संकल्प आरंभ करना चाहिए और उसमें अपनी मनोकामना कहानी चाहिए और भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारे जो भी कष्ट हो जिस प्रकार के कष्ट हों उन कष्टों को जल्दी से जल्दी दूर करने की कृपा कीजिए
फिर आपने गणेश जी का पूजन करना है अंबिका जी के साथ में।
षोडशोपचार के साथ पूजन करना चाहिए और अंत में विशेष अर्घ्य के साथ गणेश जी का पूजन करके प्रार्थना करनी चाहिए
जब गणेश जी का पूजन हो जाए उसके बाद ब्राह्मणों का वर्ण करना चाहिए जो सामग्री और दक्षिण ब्राह्मण को देनी है उसको अपने हाथ में लेकर के संकल्प करना चाहिए अगर एक ब्राह्मण हो तो एक ब्राह्मण के लिए ही संकल्प करें एक से अधिक हों तो अधिक के लिए संकल्प करें
पूजन कर्म में कलश मंत्र का मातृका वासु ग्रह का पूजन करके भगवान शंकर का पूजन करने का विधान बताया गया है अतः उपरोक्त पूजन करके भगवान शिव का पूजन करना चाहिए
सर्वप्रथम पुष्प हाथ में लेकर नंदीश्वर पूजन
वीरभद्र पूजन कार्तिकेय पूजन कुबेर पूजन कीर्तिमुख पूजन सर्पराज पूजन करने के बाद भगवान शंकर का ध्यान करें और ध्यान के उपरांत भगवान शंकर को पुष्प अर्पण करके आवाहन करें और
उसके बाद स्थापना करें (मंदिर में जो शिवलिंग प्रतिष्ठित हो उनका आवाहन और विसर्जन नहीं होता है)
ध्यान -ॐ चन्द्रोद्भासित शेखरे स्मरहरे गंगाधरे शंकरे,
सर्वैर्भूषित कण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थवैश्वानरे।
दन्तित्वक्कृत सुन्दराम्बरधरे त्रैलोक्येसारे हरे,
मोक्षार्थ कुरुचित्तवृत्तिमखिला मन्यैस्तु किं कर्मभिः ।।
सर्वप्रथम पद्य आर्य आचमन जल स्नान गंदोदक स्नान
विजय स्नान
पंचामृत स्नान
पृथक पयस्नान
दही स्नान
घृत स्नान
मधु स्नान
शकरा स्नान
शुद्धोदक स्नान
अभिषेक करने से पहले भगवान शंकर के लिए न्यास करना चाहिए जो सिर्फ पुरुष व्यक्ति को ही करने चाहिए स्त्री को न्यास नहीं करना चाहिए
(रुद्राष्टाध्यायी से रुद्राभिषेक करना चाहिए )
वस्त्रम
यज्ञोपवीत
उपवस्त्र
गंध
भस्म लेपन
अक्षत ( चावल)
पुष्प
पुष्प माला
बिल्व पत्र
दूर्वा
धतूरफल
परिमलद्रव्य
अंगपूजन
आवरण पूजन
एकादश शक्ति पूजन
गण पूजन
अष्टमूर्ति पूजा
सुंगधिद्रव्य (इत्र )
धूप दीपक
नैवेद्य (मिठाई )
ऋतु फल
तांबूल(पान )
दक्षिणा (रूपये )
साक्षत जल से तर्पण
नीराजन (आरती )
मंत्रपुष्पांजलि
प्रदक्षिणा
क्षमापन और प्रणाम
अर्पण
इस प्रकार से षोडशोपचार के द्वारा भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए अंत में अर्पण करने के उपरांत तीन बार
ॐ विष्णवे नमः
विष्णवे नमः
विष्णवे नमः
शिव लिंग पर अभिषेक करने से क्या होता है
शिव लिंग के अभिषेक में जल से वर्षा की प्राप्ति, व्याधि के नाश के लिए कुश जल से ‘अभिषेक करे। दही से पशु वाहन की प्राप्ति, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से, शहद घी से धन के इच्छुक तथा मोक्ष के चाहने वाले तीर्थ जल से अभिषेक करें। दूध के अभिषेक से बन्ध्या,काकवन्ध्या तथा मृतवत्सा को भी निश्चित रूप से पुत्र की प्राप्ति होती है। ज्वरादि की शान्ति के लिए जलधारा, वंश विस्तार के लिए घी, प्रमेह रोग शान्ति के लिए केवल दूध धारा, श्रेष्ठ बुद्धि की प्राप्ति के लिए दूध शक्कर, शत्रुनाश के लिए सरसों के तेल, पाप नाश के लिए शहद, व्याधि (हर प्रकार की) नाश के लिए घी से भगवान शिव के लिंग का अभिषेक करें। इस अभिषेक को कोई गो के सींग से धारा देकर रुद्री पाठकर शिव की प्रसन्नता के लिए अभिषेक करते हैं।
ग्यारह रुद्रीपाठ करने पर एक लघु रुद्र तथा ग्यारह लघु रुद्र पाठ करने से एक महारुद्र तथा ग्यारह महारुद्र का पाठ करने से एक अतिरुद्र होता है।
1- शिवं गवय श्रृंगेश केशवं शंख वारिणा।
विघ्नेशं ताम्र पात्रेण स्वर्णेन जगदम्बिकाम्।।
Pandit ji pranam
Hamne aapse Pooja karwai thi or hame uska fal prapt huwa
Aapka koti koti dhanyawad
bhagwan aapki sabhi manokamna poori kare khush rhiye