how to perform narayan bali

नारायण बलि करने से पहले मनुष्य को शुद्ध होना अति आवश्यक है गंगा स्नान करना चाहिए और पांच गव्य का सेवन करना चाहिए फिर पूजा आरम्भ करना चाहिए    (पंचगव्य बनाने की विधि -पंचगव्य में दूध दही घी गौमूत्र गोबर मिलाने से पंचगव्य बनता है )                                                                                                                                                               पितरों के पूजन में गलती नहीं होनी चाहिए अन्यथा आपके द्वारा किया गया कार्य व्यर्थ है और इस पूजन में यह नहीं होना चाहिए की पैसे नहीं है या हम नहीं कर सकते पितृ देवताओं को आप थोड़ा देकर खुश करते है तो वो आपको अधिक देकर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते और फिर आपका यश मान सम्मान अधिक हो जाता है
ग्यारहवें दिनसे समन्त्रक श्राद्ध करनेकी विधि है। प्राणीके दुर्मरण की निवृत्तिके लिये नारायणबलि करने की आवश्यकता होती है। दुर्मरणकी आशंका न रहनेपर नारायणबलि करना अनिवार्य नहीं है। शास्त्रोंमें दुर्मरण के निम्नलिखित कारण परिभाषित किये गये हैं- अग्निमें जलने, पानीमें डूबने. अभिचारकर्म (मारण, मोहन , उच्चाटन आदि) ब्राह्मणके द्वारा, सिंह, व्याघ्रादि हिंसक पशुओंके द्वारा, सर्पादिके द्वारा, ब्रह्मदण्डके द्वारा, विद्युत्‌के द्वारा साँड़ आदि सींगवाले जानवरोंके द्वारा इत्यादि कारणोंसे जिन पापियोंकी मृत्यु होती है, उन्हें दुर्मरण की संज्ञा दी गयी है। मुख्य रूपसे इस प्रकारसे मरनेवालोंको एकादशाहके दिन श्राद्ध के पूर्व नारायणबलि करनी आवश्यक है, कारण इस प्रायश्चित्तके बिना श्राद्ध आदिमें मृत प्राणीके निमित्त दिये गये पदार्थ उस जीवको प्राप्त नहीं होते, वे अन्तरिक्षमें स्थित रह जाते हैं-विनष्ट हो जाते हैं।
परम्परावशात् कुछ लोगकि मतमें प्राणीकी सद्गतिके निमित्त मृत्युके समय करनेकी शास्त्रोंमें जो व्यवस्था बतायी गयी है, यह कुछ प्राणियोंके साथ अन्तिम समयमें पूर्ण न होनेके कारण उसे भी दुमृत्यु मानते हैं। अतः उनके मतमें इस प्रकारकी मृत्यु होनेपर एकादशाह श्राद्धके पूर्व प्रायश्चित्तरूपमें नारायणबलि करनी चाहिये।
शास्त्रोंमें औध्वदैहिक कार्यारम्भके पूर्व हो नारायणबलि करनेकी व्यवस्था है. परंतु उस समय यह सम्भव न हो सकनेके कारण एकादशाहकार्यके पूर्व नारायणबलि करनेको विधि है।
शास्त्रोंमें दुर्मरणका मुख्य स्वरूप आत्महत्या माना गया है। बुद्धिपूर्वक स्वेच्छासे जो व्यक्ति अग्नि, शस्त्र एवं फाँसीके द्वारा अविधिपूर्वक आत्महत्या करते हैं, वे आत्महत्यारे कहे गये हैं। शास्त्रके अनुसार उनको सद्‌गति सम्भव नहीं है। इसलिये शास्त्र के अनुसार एक वर्षतक (वर्षपर्यन्त) उनके निमित्त श्राद्ध आदि कोई क्रिया नहीं करनी चाहिये। वर्ष पूरा होनेपर लोकलज्जा के भयसे नारायणबलि करके श्राद्ध आदि कृत्य करना चाहिये- नारायणबलिः कार्यों लोकगहभियान्नरैः । वर्षके भीतर आत्महत्याके निमित्त यदि कोई श्राद्धादि कृत्य करता है तो कर्ताको प्रायश्चित्तरूपमें चान्द्रायण करनेकी विधि है-
कृत्वा चान्द्रायणं पूर्व क्रियाः कार्या यथाविधि
नारायणबलि-प्रयोग-
श्राद्धकर्ता मृत्तिका, गोमय तथा पंचगव्यद्वारा स्नान आदिसे पवित्र होकर धुली हुई सफेद धोती और उत्तरीय वस्त्र (गमछा) धारण कर ले तथा श्राद्धस्थलपर आकर अपने आसनपर पूर्वाभिमुख हो बैठ जाय।
सभी श्राद्धीय वस्तुओंको यथास्थान रख ले। पंचगव्यका प्राशन कर ले।"

शिखाबन्धन - गायत्रीमन्त्रसे शिखाबन्धन कर ले।

सिंचन-मार्जन

पवित्री धारण- दो
आचमन ॐ केशवाय नमः ॐ नारायणाय नमः ॐ माधवाय नमः उसके बाद हृषिकेशाय नमः हाथ धो लें
प्राणायाम करे
रक्षा दीप जला लें
नारायण बलि अधिकार प्राप्त करने के लिए गाय के मूल्य के बराबर दक्षिणा हाथ में त्रिकुश जल तथा चावल लेकर संकल्प करके ब्राह्मण को देना चाहिए
गौ माता से प्रार्थना करें
सांगता संकल्प करके ब्राह्मण को दें
नारायणबलि -प्रतिज्ञा -संकल्प करे
विष्णु-स्मरण श्राद्ध आरम्भ करने से पूर्व भगवान विष्णु का स्मरण -पूजन करने का विधान है अतः निम्नः श्लोको से भगवान का स्मरण पूजन कर पुष्पांजलि अर्पित करके आरम्भ करना चाहिए
पंच सूक्तों का पाठ
पांच सूक्तों का पाठ करने के लिए पांच ब्राह्मणों का वरण करना चाहिए संकल्प करे
इसके यजमान गन्ध अक्षत पुष्प द्वारा ब्राह्मणों की पूजा करें
तत्पश्चात ब्रह्मसूक्त,विष्णुसूक्त,रुद्रसूक्त,यमसूक्त,तथा प्रेतसुक्त, का प्रारम्भ करना चाहिए
अष्टशक्ति सहित सत्येश का स्थापन
पूर्वदिशामें एक हाथ लम्बी-चौड़ी बराबर वेदी बनाये अथवा चौकी या पाटा रख दे। उसके ऊपर सफेद वस्त्र बिछाकर चावलसे अष्टदल कमल बनाये। पूर्वादिक कमलदलोंमें सुपारी अथवा अक्षत रखकर प्रदक्षिणक्रमसे रुक्मिणी आदि अष्ट-शक्तियोंका निम्न प्रकारसे आवाहन करे
ॐ रुक्मिणीनमः
ॐ सत्यभामा नमः
ॐ जाम्बवत्यै नमः,
ॐ नाग्नजित्यै नमः,
ॐ कालिन्यै नमः,
ॐ मित्रविन्दायै नमः,
ॐ लक्ष्मणाये नमः
ॐ भद्राये नमः
कलश स्थापन
कलश का पूजन करे स्थापन वरुण देवता का आवाहन करे
कलश में सभी देवी देवताओं आवाहन करे फिर प्रतिष्ठा करें
सत्येश की सुवर्ण (सोने) मूर्ति बनाकर अग्न्यु तारण पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करके उसे कलश पर स्थापित करे अग्न्युत्तारण तथा प्राणप्रतिष्ठा इस प्रकार करे अवघात दोष निवारण के लिए यह विधि करना बहुत आवश्यक है
प्राण प्रतिष्ठा प्रतिज्ञा त्रिकुश अक्षत जल लेकर संकल्प करे फिर सत्येश की मूर्ति पर छोड़ दें
सत्येश की मूर्ति पर घी लगाकर अनेक मंत्रो से जल धारा देनी चाहिए
उसके बाद प्राण प्रतिष्ठा करे
अष्ट शक्ति सहित सत्येश का पूजन षोड़शो पचार से पूजन करे
और अर्पण कर दें
अग्नि स्थापन करे
प्रतिज्ञा संकल्प

अग्निस्थापन

अग्नि स्थापन का मन्त्र
कुशास्तरण
पांच कलशों का स्थापन
पंचा कलशो की मूर्ति की अग्न्युत्तारण और संकल्प करना चाहिए
प्राण प्रतिष्ठा ब्रह्मा विष्णु रूद्र और यम इनकी प्राण प्रतिष्ठा एक साथ होगी और प्रेतमूर्ति की अलग होगी
ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन पूजन
सर्व प्रथम ब्रह्मा विष्णु रूद्र यम
यहाँ पर भी प्रेत मूर्ति की पूजा अलग होगी
१. षोडशोपचार- पाद्य आचमन स्नान धूप, दीप नैवेद्य आचमन ताम्बूल पंचोपचार गन्ध पुष्प धूप. दीप तथा नैवेद्य पूजन में दक्षिणा भी दें फिर समर्पित कर दें
हवन विधि
आघार होम
आज्य होम
प्रधान होम

स्विष्टकृत्-आहुति-
संस्त्रव-प्राशन-
पूर्णपात्रदान-
ब्राह्मण-भोजन-संकल्प - दाहिने हाथमें त्रिकुश, जल, अक्षत लेकर निम्न संकल्प करे-

विष्णु तर्पण-

विष्णु तर्पण के लिए संकल्प करे नाम गोत्र के साथ अपने पितरो के कल्याण के लिए विष्णु तर्पण बहुत जरुरी होता है अनेक मंत्रो से भगवान नारायण का तर्पण करना चाहिए इसमें गलती नहीं होनी चाहिए

सांगता के लिए ब्राह्मण भोजन संकल्प करे
प्रार्थना-
प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्।
स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्ण स्याटित मुरिः।
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो बन्दे तरम्।
यत्पादपङ्कजस्मरणाद् यस्य नामजपादपि । न्यूनं कर्म भवेत् पूर्णं तं वन्दे साम्बी।

॥ ॐ विष्णवे नमः । ॐ विष्णवे नमः । ॐ विष्णवे नमः ॥
ॐसाम्बसदाशिवाय नमः । ॐ साम्बसदाशिवाय नमः । ॐ साम्बसदाशिवाय नमः ।
॥ नारायणबलि-प्रयोग पूरा हुवा ||
इसके बाद नारायणबलि श्राद्ध प्रयोग आरम्भ किया जाता है

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